Razia Sultana History: हिंदी में पूरी जानकारी


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इतिहास में आप जब भी मुस्लिम शासन काल के बारे में पढ़ेंगे तो आपको रज़िया सुल्ताना का नाम जरूर पढ़ने को मिलेगा। रज़िया सुल्ताना का नाम आज भी अदब से लिया जाता है। क्योंकि रज़िया सुल्ताना पहली और आखिरी दिल्ली की मुस्लिम महिला शासक थी। जिन्होंने अपने शासन काल में बहुत से ऐसे काम किये थे जिनसे आम जनमानस का भला हुआ था। इस लेख में आप Razia Sultana History से जुडी बाते जानेंगे। इस लेख को पढ़ने के बाद आपको रज़िया सुल्ताना के साहस और नेक कार्यों के बारे में पता चलेगा।

Razia Sultana History

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Pic: dotcomplicated.co

रज़िया का जन्म दिल्ली के सुल्तान शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के घर 1205 ईस्वी में हुआ था। वे शम्सुद्दीन इल्तुतमिश की अकेली पुत्री थी। रजिया का जन्मस्थल आज के समय के उत्तर प्रदेश राज्य के बदायूँ शहर में हुआ था।

वे शम्सुद्दीन इल्तुतमिश की सबसे बड़ी बेटी थी। और शायद ये भी हो सकता है की रजिया शम्सुद्दीन इल्तुतमिश की पहली संतान हो।

शम्सुद्दीन इल्तुतमिश एक गुलाम थे, जिन्होंने कुतुबुद्दीन ऐबक की पुत्री तुरकन खातून से शादी की थी। और रज़िया कुतुबुद्दीन ऐबक की नवासी थी। कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की और मामलुक राजवंश की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी।

शम्सुद्दीन इल्तुतमिश भले ही एक गुलाम की तरह दिल्ली में आये थे। लेकिन इल्तुतमिश ने अपने कार्यों से दिल्ली के सुल्तान को प्रभावित कर दिया था। इसी वजह से इल्तुतमिश को प्रांतीय गवर्नर के रूप में नियुक्त कर दिया गया।

शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (एक तुर्क बोलने वाला गुलाम) मामलुक राजवंश से थे। उन्होंने अराम शाह को हरा कर दिल्ली के गद्दी से हटा दिया और खुद दिल्ली के सुल्तान बन गए। शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने अपने सभी बच्चों को (चाहे वो रज़िया ही क्यों ना हो) एक समान परवरिश और अच्छे गुण देने की कोशिश की।

इसके अलावा इल्तुतमिश ने अपने सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ-साथ तीरंदाजी, मार्शल आर्ट और शासन करने के लिए भी प्रशिक्षण दिया।

शम्सुद्दीन इल्तुतमिश अपने सबसे बड़े बेटे नसीरुद्दीन महमूद को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। लेकिन 1229 में उनके बेटे की मृत्यु हो गई। नसीरुद्दीन की मृत्यु होने के बाद इल्तुतमिश ने ग्वालियर जाने से पहले दिल्ली सल्तनत का शासन अपनी पुत्री रज़िया के हाथ में सौंप दिया।

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इल्तुतमिश के ग्वालियर जाने के बाद रज़िया ने अपनी सारी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाया। जब इल्तुतमिश ग्वालियर से दिल्ली आए तो रज़िया के शासन को देखकर बहुत प्रभावित हुए।

और उन्होंने रजिया को अपना उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिया। इल्तुतमिश ने अपने मुख्य दरबारियों से रजिया को दिल्ली सल्तनत का वैध उत्तराधिकारी घोषित करने को कहा।

इल्तुतमिश के इस आदेश पर दिल्ली सल्तनत के कई मुख्य लोगों ने उनसे सवाल पूछा की उनके दूसरे बेटों के होते हुए वे रज़िया को दिल्ली सल्तनत का उत्तराधिकारी कैसे घोषित कर सकते हैं। इल्तुतमिश ने यही जवाब दिया की उनके दूसरे बेटों की तुलना में रज़िया उत्तराधिकारी बनने के ज्यादा लायक है।

जब इल्तुतमिश की मृत्यु 30 अप्रैल 1236 को हुई, तब बहुत से मुस्लिम दरबारियों ने रज़िया को अपना असली उत्तराधिकारी मानने से मना कर दिया। उन्होंने रज़िया के भाई रुक्नुद्दीन फ़िरोज़ को दिल्ली के गद्दी पर बैठा दिया।

असल में दिल्ली पर शासन रुक्नुद्दीन फ़िरोज़ नहीं बल्कि उसकी माँ शाह तुरकन कर रही थी। क्योंकि रुक्नुद्दीन फ़िरोज़ एक काबिल शासक नहीं था उस पर दिल्ली का भार नहीं संभल रहा था।

रज़िया और उनको समर्थन करने वाले अन्य लोगों ने मिलकर महल पर हमला कर दिया और शाह तुरकन को पकड़ लिया। अंततः 10 नवंबर 1236 को रज़िया दिल्ली की पहली मुस्लिम महिला शासक बन गई और पुरे राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली।

बाद में जब रज़िया सुल्ताना बन गई थी तब उन्होंने रुक्नुद्दीन फ़िरोज़ को पकड़वा कर जेल में डलवा दिया था। रुक्नुद्दीन फ़िरोज़ का शासन काल दिल्ली पर लगभग 6 महीने तक ही चला था।

समय के साथ-साथ वे नए क्षेत्रों को जीतती चली गई और अपने राज्य को और मजबूत बनाती गई। रज़िया सुल्ताना ने अपने शासन काल में बहुत से बड़े काम किये थे। जिससे उनकी प्रजा बहुत खुश थी। उन्होंने अपने शासन काल में बहुत से विद्यालय, पुस्तकालय और अन्य संस्थान भी बनाये थे।

रज़िया अपने राज्य में सफलतापूर्वक शासन कर रही थी और उनके शासन करने के तरीकों को देखकर बहुत से लोग उनसे खुश और प्रभावित थे। इसी वजह से उनके बहुत सारे समर्थक और प्रशंसक बन गए थे।

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सुल्ताना बनने के बाद उन्होंने अपने औरतों वाले पोशाक पहनने छोड़ दिए और पुरुषों की पोशाक पहननी शुरू कर दी। रज़िया सुल्ताना ने फिर आपने नाम के सिक्के भी जारी किए और अपने आप को महिलाओं का स्तंभ घोषित किया।

इसके अलावा उन्होंने पुरुष सुल्तानों की तरह हाथियों पर सवारी कर दिल्ली की आम जनता के बीच भी जाना शुरू कर दिया था। रज़िया के बढ़ते प्रभाव और महत्वपूर्ण पदों पर गैर-तुर्क लोगों की नियुक्ति करने की वजह से दिल्ली सल्तनत के अन्य बड़े पदों पर बैठे तुर्क लोगों को नाराज कर दिया था।

बड़े पदों पर बैठे तुर्कों और रज़िया को नापसंद करने वाले बहुत से अन्य लोग आपस में मिलकर रज़िया को दिल्ली सल्तनत से हटाने की योजना बनाने लगे। रज़िया को ये भी पता नहीं था की दिल्ली सल्तनत के अन्य लोगों ने अल्तुनिया के साथ मिलकर उनके खिलाफ साजिश कर रहे थे।

जब रज़िया लाहौर से 3 अप्रैल 1240 को दिल्ली आयी, तो उन्हें पता चला की अल्तुनिया ने तबरहिंदा में उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया है। जब इस बारे में रज़िया को पता चला तो उन्होंने तबरहिंदा की तरफ मार्च कर दिया।

लेकिन रज़िया का वहां जाना उनके लिए खतरनाक साबित हुआ। क्योंकि विद्रोहियों की सेना ने तबरहिंदा में उनके वफादार याकूत को मार दिया और रज़िया को पकड़ कर कैद कर लिया।

जब रज़िया के पकडे जाने की खबर दिल्ली पहुंची तो वहां के विद्रोही लोगों ने इल्तुतमिश के पुत्र मुइज़ुद्दीन बहराम को दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठा दिया। रज़िया को गद्दी से हटाने के बाद महल के बड़े पदों पर बैठे लोगों ने दिल्ली सल्तनत के महत्वपूर्ण कार्यालयों को आपस में बाँट लिया।

अल्तुनिया को रज़िया सुल्ताना को पकड़ने का कोई फायदा नहीं हुआ। क्योंकि रज़िया के पकड़े जाने के बाद जो उसने सोचा था वो उसे नहीं मिला। इसलिए उसने रज़िया के साथ हाथ मिलाने का फैसला किया।

रज़िया ने भी इस बात के लिए सहमति दे दी और उन्हें अपनी राजगद्दी पाने का ये अच्छा मौका लगा। रज़िया ने अल्तुनिया से हाथ मिलाने के बाद 1240 में उससे शादी कर ली।

दिल्ली पर हमला करने के लिए रज़िया और अल्तुनिया ने मिलकर अपनी सेना बनानी शुरू कर दी। दिल्ली के सुल्तान मुइज़ुद्दीन बहराम ने अपने नेतृत्व में अपनी सेना के साथ अल्तुनिया और रज़िया की सेना पर हमला करने के लिए मार्च कर दिया।

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और 14 अक्टूबर 1240 को बहराम ने अल्तुनिया और रज़िया को हरा दिया। हार के बाद वो दोनों पीछे हटने के लिए मजबूर हो गए। और अल्तुनिया और रज़िया के सैनिकों ने भी उन्हें छोड़ दिया। 15 अक्टूबर 1240 के दिन उन दोनों को लोगों के एक समूह ने मार दिया।

निष्कर्ष (Conclusion)

रज़िया दिल्ली सल्तनत की 5वीं मामलुक सुल्तान थी। वही सिर्फ एक ऐसी मुस्लिम महिला थी जो की दिल्ली सल्तनत की राजगद्दी पर बैठी थी।

उनका दिल्ली के राजगद्दी पर बैठना सिर्फ इसलिए ही ख़ास नहीं था की वो एक महिला है, बल्कि उन्हें वहां की आम जनता का भी बहुत ज्यादा समर्थन था और वो रज़िया को पसंद भी करते थे।

रज़िया के पिता शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के अनुसार उनके सारे बच्चों में सिर्फ रज़िया ही राजगद्दी पर बैठने के लायक थी। इसलिए उन्होंने रज़िया को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहा।

रज़िया को बहुत से तुर्क पसंद नहीं करते थे। और उन्होंने आपस में मिलकर रज़िया के खिलाफ साज़िश भी किया। और रज़िया को दिल्ली के राजगद्दी से हटा दिया।

दिल्ली के राजगद्दी से हटने के बाद भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अंत तक अपने हक़ के लिए लड़ती रही। रजिया सुल्ताना का इतिहास जानने के बाद आप भी इस बात से सहमत हो गए होंगे कि उनकी जैसी साहसी और बुद्धिमान मुस्लिम महिला उनके बाद कभी दोबारा सुल्तान नहीं बन सकी।

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FAQ (Frequently Asked Questions)

रज़िया को सुल्ताना क्यों कहाँ जाता हैं?

सुल्ताना शब्द का अर्थ महारानी (महाराजा की पत्नी) से है। हालाँकि आज के समय के कुछ आधुनिक लेखकों द्वारा इस्तेमाल किया गया शब्द सुल्ताना का अर्थ महिला शासक बताया जाता है। जो की एक मिथ्या है। क्योंकि असल में सुल्ताना शब्द का अर्थ राजा की पत्नी है।

रज़िया सुल्ताना की कब्र कहाँ हैं?

रज़िया सुल्ताना की कब्र मोहल्ला बुलबुली खाना में स्थित है, जो की पुरानी दिल्ली में तुर्कमान गेट के पास है।

रज़िया सुल्ताना के बाद दिल्ली का सुल्तान कौन बना था?

रज़िया सुल्ताना के हारने और दिल्ली सल्तनत के राजगद्दी से हटने के बाद उनका सौतेला भाई मुइज़ुद्दीन बहराम दिल्ली का छठा सुल्तान बना था।


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