दोस्तों जब भी दान-पुण्य, धर्म-कर्म, और सत्य की बात होती है तो राजा हरिश्चंद्र का नाम जरूर लिया जाता है। क्योंकि वे इतने धर्मपरायण और दानवीर थे की यदि वे सपने में भी स्वयं को किसी को दान देते हुए देख लेते थे तो अगले दिन वास्तव में उस व्यक्ति को दान देते थे। इस लेख में आपको पता चलेगा की Raja Harishchandra ki kahani क्या है। और आप ये भी पढ़ेंगे की उन्होंने अपने जीवन में विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए भी धर्म और सच्चाई का रास्ता नहीं छोड़ा। तो चलिए जानते है राजा हरिश्चंद्र की कहानी क्या है।
Raja Harishchandra ki Kahani » सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कहानी
मार्कण्डेय पुराण की कथा के अनुसार राजा हरिश्चंद्र बहुत ही ईमानदार और अच्छे राजा थे। उनके राज्य में उनकी प्रजा हसी ख़ुशी रह रही थी। राजा हरिश्चंद्र की पत्नी का नाम महारानी तारामती देवी था। उनका एक पुत्र भी था जिसका नाम रोहिताश्व (Rohitashva) था।
जब एक बार वह शिकार पर गए हुए थे तब उन्होंने एक औरत को मदद के लिए चिल्लाते हुए सुना। वह अपने तीर और धनुष के साथ उस आवाज़ की दिशा की ओर चल दिए। वह आवाज़ एक भ्रम था जिसे विघ्नराज ने उत्पन्न किया था।
विघ्नराज महर्षि विश्वामित्र की तपस्या को भंग करने में लगे हुए थे। जब विघ्नराज ने राजा हरिश्चंद्र को देखा तो वो उनके शरीर में प्रवेश कर गए और महर्षि विश्वामित्र को अपशब्द कहने लगे। जिसकी वजह से महर्षि विश्वामित्र की तपस्या टूट गई।
जब राजा हरिश्चंद्र होश में वापस आए तो उन्होंने देखा की महर्षि विश्वामित्र बहुत ही ज्यादा क्रोधित है। महर्षि का क्रोध शांत करने के लिए राजा ने उनसे माफ़ी भी मांगी और उन्होंने महर्षि विश्वामित्र को ये वचन भी दे दिया की वे इस गलती के लिए उनकी (महर्षि विश्वामित्र की) कोई भी इच्छा पूरी करने के लिए तैयार है।
महर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र से राजसूय यज्ञ के लिए दक्षिणा मांगी। राजा ने महर्षि से पूछा की उन्हें दक्षिणा में क्या चाहिए? इस सवाल के उत्तर में महर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र से कहा की, “स्वयं को, अपनी पत्नी और अपने बच्चे को छोड़कर जो भी तुम्हारे पास है वो सब कुछ मुझे दे दो”।
राजा हरिश्चंद्र ने महर्षि विश्वामित्र को उनके कहे के मुताबिक सब कुछ दे दिया। उनके अधिकार में जो कुछ था वो सब कुछ दे दिया यहाँ तक की अपने कपडे भी।
जब राजा हरिश्चंद्र अपने परिवार के साथ अयोध्या से जाने के लिए तैयार थे तभी महर्षि विश्वामित्र ने कहा की, “जप, तप, दान, आदि बिना दक्षिणा दिये सफल नहीं होते। इसका तात्पर्य ये था की महर्षि उनसे दूसरी बार दक्षिणा (दान) करने के लिए कह रहे थे।
राजा हरिश्चंद्र ने महर्षि विश्वामित्र से कहा की उनके पास अब दक्षिणा में देने के लिए कुछ भी शेष नहीं बचा है। फिर भी उन्होंने महर्षि से एक महीने के अंदर दूसरी दक्षिणा देने के लिए वचन दे दिया।
अपने राज्य और महल को छोड़ने के लगभग एक महीने बाद वे पवित्र नगरी काशी पहुंचे। हालाँकि उनसे पहले महर्षि विश्वामित्र वहां पहुँच गए और उन्होंने राजा को उनके द्वारा दिए गए दक्षिणा के वचन को उन्हें याद दिलाया।
फिर राजा हरिश्चंद्र ने कहा की अभी एक माह पूरा होने में कुछ समय शेष है। महर्षि ने दोबारा आने की बात कही और वहाँ से चले गए। राजा ने देखा की उनका पुत्र भूख से बिलबिला रहा है और ऐसे में वो महर्षि के लिए इतनी जल्दी दक्षिणा कहाँ से लाएंगे।
राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तारामती ने राजा को सुझाव दिया की वे उन्हें बेच दे जिसके बदले उन्हें कुछ धन मिल जायेगा। राजा हरिश्चंद्र के लिए ये बहुत कठिन समय था, राजा हरिश्चंद्र ने दिल पर पत्थर रखते हुए अपनी पत्नी के इस सुझाव पर अम्ल किया और अपनी पत्नी तारामती को एक वृद्ध ब्राह्मण को बेच दिया।
रोहिताश्व अपनी माँ के बिना नहीं रह सकता था। इसलिए उसे भी देवी तारामती के साथ रहने के लिए स्वीकार कर लिया गया। ताकि वो अपनी माँ की सहायता कर सके। रोहिताश्व के बदले में राजा हरिश्चंद्र को कुछ और धन मिल गया।
फिर राजा हरिश्चंद्र ने दक्षिणा के धन को पूरा करने के लिए स्वयं को भी बेच दिया। उन्होंने स्वयं को एक समशान के चांडाल को बेच दिया। उस चांडाल ने राजा हरिश्चंद्र को उसके समशान की रखवाली के लिए काम पर लगा दिया।
उस चांडाल ने राजा हरिश्चंद्र से कहा की जितने भी शवों का यहाँ पर अंतिम संस्कार होगा, उसे (राजा को) प्रत्येक शव के लिए कुछ कर या शुल्क लेना होगा।
वसूले गए कर का एक हिस्सा उस चांडाल के पास जायेगा और एक हिस्सा वहां के राजा के पास जायेगा और शेष जो कुछ बचता है वे राजा हरिश्चंद्र का पारिश्रमिक होगा।
एक दिन जब रोहिताश्व ब्राह्मण की पूजा के लिए फूल चुन रहा था तो उसे साँप ने डस लिया। साँप के डसने के बाद उसकी वही मृत्यु हो गई। देवी तारामती ने अपने पुत्र के शव को उठाया और रोती बिलखती अपने पुत्र को अपने हाथों में लिए समशान घाट की ओर चल दी।
उसी दौरान राजा हरिश्चंद्र ने अपने सपने में देखा की उनकी पत्नी देवी तारामती उनके सामने रो रही है। जब राजा हरिश्चंद्र की आँख खुली तो उन्होंने देखा की सच में उनकी पत्नी उनके सामने समशान में रो रही है और उसके हाथ में उनका पुत्र है।
जब देवी तारामती ने अपने पुत्र के अंतिम संस्कार की बात की तो राजा हरिश्चंद्र ने उन्हें बताया की समशान का कर दिए बिना वो अंतिम संस्कार नहीं कर सकती। हरिश्चंद्र के स्वामी (चांडाल) ने उनसे प्रत्येक शव के लिए कर वसूलने के लिए कहा था।
देवी तारामती ने कहा की उनके पास समशान का कर देने के लिए कुछ भी नहीं है। बस जो साडी मैंने पहन रखी है वही मेरे पास है। आप इस साडी का आधा हिस्सा कर के रूप में ले लो।
जैसे ही देवी तारामती ने अपनी साडी फाड़ने के लिए हाथ उठाया वैसे ही वहाँ यम और महर्षि विश्वामित्र के साथ अन्य देवी-देवता भी प्रकट हो गए।
हरिश्चंद्र का स्वामी वे चांडाल असल में यम देवता ही थे। उन सभी ने राजा हरिश्चंद्र की धार्मिकता और ईमानदारी की प्रशंसा की और उन्हें स्वर्ग आने का निमंत्रण भी दिया। सत्य के प्रभाव से राजा हरिश्चंद्र और देवी तारामती को स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
Raja Harishchandra Movie
राजा हरिश्चंद्र 21 अप्रैल 1913 को रिलीज़ हुई एक भारतीय मूक फिल्म यानी साइलेंट मूवी है। इस फिल्म को दादा साहब फाल्के द्वारा निर्देशित और निर्मित किया गया था। यह फिल्म 40 मिनट लम्बी है।
इस फिल्म में राजा हरिश्चंद्र का किरदार दत्तात्रेय दामोदर दाबके ने किया है। और राजा हरिश्चंद्र की पत्नी देवी तारामती का किरदार अन्ना सालुंके ने किया है। इनके अलावा इस फिल्म में भालचंद्र फाल्के ने रोहिताश्व और गजानन वासुदेव साने ने विश्वामित्र की भूमिका निभाई है।
निष्कर्ष (Conclusion)
इस लेख में आपने राजा हरिश्चंद्र की कहानी पढ़ी। इस कहानी को पढ़ने के बाद आपको राजा हरिश्चंद्र के व्यक्तित्व के बारे में पता चला होगा की वे कितने धर्मपरायण, ईमानदार और दानवीर राजा थे।
महर्षि विश्वामित्र राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा ले रहे थे की क्या वो विषम परिस्थितियों में भी अपनी धार्मिकता और अच्छे गुणों को छोड़ तो नहीं रहे थे। महर्षि विश्वामित्र के इस परीक्षा और राजा हरिश्चंद्र की सच्चाई के कारण उनको स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
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FAQ (Frequently Asked Questions)
राजा हरिश्चंद्र के बाद अयोध्या का राजा कौन बना?
राजा हरिश्चंद्र के बाद महर्षि विश्वामित्र ने राजकुमार रोहिताश्व को अयोध्या का राजा बना दिया।
राजा हरिश्चंद्र कौन से युग में थे?
मार्कण्डेय पुराण की कथा के अनुसार राजा हरिश्चंद्र त्रेता युग में रहते थे।
राजा हरिश्चंद्र की पत्नी महारानी तारामती देवी को और किस नाम से जाना जाता है?
राजा हरिश्चंद्र की पत्नी महारानी तारामती देवी को शैव्या नाम से भी जाना जाता है।
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