Sarojini Naidu History: जाने क्यों इनका जन्मदिन बना वूमेंस डे


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सरोजिनी नायडू एक राजनीतिक कार्यकर्ता, कवयित्री और भारत के आजादी को समर्थन करने वाली महिला था। वे कई भाषाओं को बहुत अच्छे से जानती थी। उनके पिताजी भी भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में थे और सामाजिक राजनीती में सक्रीय थे। इस लेख में आप Sarojini Naidu History के बारे में जानेंगे। सरोजिनी को The Nightingale of India भी कहा जाता है। उन्होंने अपने पुरे जीवन काल में बहुत से महत्वपूर्ण काम किये है और वे आजाद भारत के राज्य की पहली राज्यपाल भी बनी।

Sarojini Naidu History

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सरोजिनी नायडू का परिवार हैदराबाद के सम्मानित परिवारों में से एक था। उनके परिवार के अधिकतर लोग भारत की स्वतंत्रता के समर्थन से किसी न किसी तरीके से जुड़े हुए थे।

वे एक बहुत अच्छी वक्ता और कवी थी जो अपनी बातों को कम से कम शब्दों में भी व्यक्त कर देती थी। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता, साहित्य और समाज को सुधारने में बहुत बड़ा योगदान दिया है।

सरोजिनी नायडू का भारत की राजनीति से परिचय कराने में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दो प्रसिद्ध और महान नेताओं, महात्मा गांधी और गोपाल कृष्ण गोखले का हाथ था।

सरोजिनी पर 1905 में हुए बंगाल के विभाजन का गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने बंगाल के विभाजन के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का निर्णय लिया।

वह गोपाल कृष्ण गोखले से नियमित रूप से मिलती रही और उन्होंने सरोजिनी को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अन्य नेताओं से भी मिलवाया।

गोखले ने सरोजिनी को अपने ज्ञान और कला को इस आंदोलन में उपयोग करने के लिए सुझाव दिया। सरोजिनी पहली बार जवाहर लाल नेहरू से 1916 में मिली थी।

नेहरू के साथ मिलकर सरोजिनी ने पश्चिमी बिहार के चंपारण में नील श्रमिकों की दयनीय स्थितियों को सुधारने के लिए काम किया। और साथ ही उनके अधिकारों के लिए अंग्रेजों से जमकर लड़ाई भी की।

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सरोजिनी नायडू ने पुर भारत का भ्रमण करते हुए लोगों को राष्ट्रवाद, महिलाओं की स्वतंत्रता और नौजवानों के कल्याण के बारे में भाषण देती गई।

उन्होंने 1917 में एनी बेसेंट और कुछ अन्य जाने माने लोगों के साथ मिलकर Women’s India Association की स्थापना करने में योगदान दिया।

जब महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) चलाया था तब सरोजिनी नायडू उससे जुड़ने वाली पहली ने व्यक्ति बनी।

Mahatma gandhi and Sarojini Naidu 1930

उन्होंने महात्मा गाँधी का साथ दिया और उनके बहुत से अन्य आंदोलनों जैसे सत्याग्रह प्रतिज्ञा, खिलाफत आंदोलन, साबरमती संधि और सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

जब महात्मा गाँधी को 1930 में दांडी तक नमक मार्च (Salt March) के बाद हिरासत में लिया गया था, तब सरोजिनी नायडू ने अन्य नेताओं के साथ मिलकर धरसाना सत्याग्रह (Dharasana Satyagraha) का नेतृत्व किया था।

साल 1931 में सरोजिनी महात्मा गाँधी के साथ अंग्रेजी सरकार से होने वाली राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के लिए लंदन चली गई थी।

भारतीय स्वतंत्रता और राजनितिक गतिविधियों में शामिल होने की वजह से उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। जब उन्हें 1942 में हिरासत में लिया गया था तब उन्हें 21 महीनों की सजा हुई थी।

उन्होंने गाँधी के विचारों को फ़ैलाने के लिए अमेरिका और यूरोप की यात्रा भी की। उनको भारत की आजादी के बाद संयुक्त प्रान्त (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) की पहली राज्यपाल के तौर पर भी नियुक्त किया गया। और उनकी मृत्यु तक वे इस पद पर विराजमान रही।

सरोजिनी नायडू के जन्म के दिन को यानी 13 फरवरी को महिला दिवस (Indian National Women’s Day) के तौर पर मनाया जाता है।

Sarojini Naidu Biography

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। उनके पिताजी का नाम डॉ अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था। डॉ अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक वैज्ञानिक, शिक्षक और दार्शनिक थे।

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वे एक बंगाली ब्राह्मण और निज़ाम कॉलेज के प्रधानाचार्य थे। उन्होने हैदराबाद के निज़ाम कॉलेज को शुरू किया था। सरोजिनी नायडू की माताजी का नाम बरदा सुंदरी देवी था वो एक बंगाली कवयित्री थी।

सरोजिनी चट्टोपाध्याय अपने आठ-भाई बहनों में से सबसे बड़ी थी। उनके पिता हैदराबाद में इंडियन नेशनल काँग्रेस के पहले सदस्य थे। सरोजिनी का परिवार हैदराबाद का एक बहुत सम्मानित परिवार था।

सामाजिक राजनीति मे शामिल होने की वजह से उनके पिता डॉ अघोरनाथ चट्टोपाध्याय को प्रधानाचार्य की पद से हटा दिया ज्ञ था।

सरोजिनी बहुत ही होशियार और प्रतिभावान लड़की थी। वे फ़ारसी, बंगाली, उर्दू, अंग्रेजी और तेलुगु भाषाएं बोलने में सहज थी।

1891 में जब सरोजिनी सिर्फ 12 साल की थी तब उन्होने मेट्रिक की परीक्षा को पास किया था और युनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए तैयार हो गई थी।

उनके पिताजी चाहते थे की वे विज्ञान या गणित में अपना भविष्य बनाए लेकिन सरोजिनी को कविताएं ज्यादा पसंद थी।

उन्होंने अपने लिखने की अनोखी कला से बहुत सी कविताएं लिखी। जैसे की उन्होंने एक 1300 लाइन की अंग्रेजी कविता “The Lady of the Lake” लिखी।

उनके पिताजी ने उनकी लिखने की कला की तारीफ की। कुछ महीनों बाद सरोजिनी ने अपने पिताजी की सहायता से एक फ़ारसी नाटक “मैहर मुनीर (Maher Muneer)” लिखा।

1895 से 1898 तक उन्होंने इंग्लैंड के लंदन में स्तिथ किंग्स कॉलेज में पढाई की। फिर हैदराबाद के निज़ाम से छात्रवृत्ति मिलने के बाद उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के गिरटन कॉलेज से भी पढाई की।

जब सरोजिनी इंग्लैंड में पढाई कर रही थी तब सरोजिनी को मुथ्याला गोविंदराजुलु नायडू (Muthyala Govindarajulu Naidu) से प्यार हो गया। गोविंदराजुलु नायडू एक दक्षिण भारतीय गैर-ब्राह्मण डॉक्टर थे।

भारत आने के बाद सरोजिनी के परिवार की अनुमति से उनकी गोविंदराजुलु नायडू से 19 साल की उम्र में सगाई हो गई। 1898 में मद्रास में उन दोनों की शादी ब्रह्मो विवाह अधिनियम 1872 के तहत हो गई।

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उस शादी के लिए दोनों परिवारों ने अपनी सहमति दे दी थी। और उनका वैवाहिक जीवन बहुत खुशहाल था। उन दोनों के पांच बच्चे हुए। जब उन दोनों की शादी हुई थी तब अंतर्जातीय शादी को भारतीय समाज में बिलकुल स्वीकार नहीं किया जाता था।

उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल सरोजिनी नायडू की मृत्यु 2 मार्च 1949 को लखनऊ के गवर्नमेंट हाउस में हुई थी। उनके निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार गोमती नदी पर किया गया था।

निष्कर्ष (Conclusion)

सरोजिनी नायडू ने एक कवयित्री होने के साथ-साथ भारत के स्वतंत्रता में बहुत बड़ा योगदान दिया है। वे बचपन से ही बहुत बुद्धिमान और प्रतिभावान थी।

उनके पिताजी डॉ अघोरनाथ चट्टोपाध्याय चाहते थे की वे विज्ञानं या गणित पढ़े। लेकिन उनका मन कविताओं और साहित्य में बस्ता था।

वे अपनी मैट्रिक की पढाई करने के बाद इंग्लैंड पढ़ने के लिए चली गई। फिर उन्हें हैदराबाद के निज़ाम से आगे पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति भी प्राप्त हुआ।

जब वे इंग्लैंड में पढाई कर रही थी तब उन्हें मुथ्याला गोविंदराजुलु नायडू से प्रेम हो गया। बाद में उन दोनों ने अपने परिवार के लोगों की सहमति से शादी भी कर लिया।

सरोजिनी ने 1905 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आंदोलन के लिए अपने कदम आगे बढ़ाए और फिर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा।

उन्होंने औरतों के उत्थान के लिए बहुत काम किया और इसके अलावा समाज के अन्य बुराइयों को सुधारने के लिए भी काम किया। यदि आपको इस लेख से संबंधित कुछ भी सवाल पूछना हो या कुछ शेयर करना हो तो आप हमें कमेंट करके कर सकते हैं।

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FAQ (Frequently Asked Questions)

सरोजिनी नायडू की मृत्यु किस वजह से हुई थी?

सरोजिनी नायडू की मृत्यु बुधवार, 2 मार्च 1949 को 3:30 p.m. पर कार्डियक अरेस्ट की वजह से हुई थी।

सरोजिनी नायडू के "Golden Threshold" नाम से कविताओं का संग्रह कब निकाला गया?

सरोजिनी के Golden Threshold नाम से कविताओं का संग्रह 1905 में रिलीज़ किया गया।

सरोजिनी नायडू को "Nightingale of India" क्यों कहा जाता है?

सरोजिनी नायडू की साहित्यिक कार्यों और उनकी कविताओं की गुणवत्ता को देखते हुए “गाँधी ने उन्हें Nightingale of India का नाम दिया”।


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